शुक्राणु की कमी की आयुर्वेदिक दवा और इलाज - Ayurvedic medicine and treatment for Low sperm count -8010977000

शुक्राणु की कमी की आयुर्वेदिक दवा और इलाज - Ayurvedic medicine and treatment for Low sperm count in Hindi -8010977000

शुक्राणु की कमी की आयुर्वेदिक दवा और इलाज - Ayurvedic medicine and treatment for Low sperm count in Hindi -8010977000


वीर्य में शुक्राणुओं का स्‍तर 20 मि.ली से कम होने का मतलब है पुरुषों में स्‍पर्म काउंट का कम होना। आयुर्वेद में शुक्राणुओं की कमी का संबंध क्षीण शुक्र से बताया गया है जिसमें शुक्र (वीर्य) की गुणवत्ता और संख्‍या कम होने लगती है।

शुक्राणुओं की कमी के आयुर्वेदिक उपचार में स्‍नेहन (तेल मालिश की विधि), विरेचन (दस्‍त की विधि) और बस्‍ती (एनिमा) शामिल है। इस समस्‍या और इससे संबंधित लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए गोक्षुरा, अश्‍वगंधा, कपिकच्छू, शतावरी, शिलाजीत, श्‍वेत मूसली, वंग भस्‍म (तांबे को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई), मस अश्वगंधादि चूर्ण और माषादि वटी जैसी जड़ी बूटियों एवं औषधियों की सलाह दी जाती है।

स्पर्म काउंट की कमी की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Sperm count kam hone ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav

स्‍पर्म काउंट के 20 मि.ली से कम होने पर शुक्राणुओं में कमी आना एक सामान्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या है। आयुर्वेद के अनुसार अनुचित आहार और जीवनशैली की वजह से पुरुषों में शुक्राणुओं की कमी होने लगती है। आयुर्वेदिक चिकित्‍सक स्‍पर्म काउंट कम होने के कारण की पहचान करने में आपकी मदद कर सकते हैं। इसके अलावा वीर्य में शुक्राणुओं की संख्‍या बढ़ाने के लिए हर्बल नुस्‍खे और उपचार के साथ-साथ जीवनशैली एवं उपचार में बदलाव की सलाह भी दी जाती है। इस तरह न केवल शुक्राणुओं की संख्‍या में इजाफा किया जाता है बल्कि संपूर्ण सेहत में सुधार लाया जा सकता है।

आयुर्वेद के अनुसार स्पर्म काउंट की कमी होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Low sperm count hone par kya kare kya na kare

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क्‍या करें

  • काला नमक, घी और आमलकी को अपने आहार में शामिल करें। 
  • नियमित व्‍यायाम करें। 

क्‍या न करें

  • प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि प्‍यास, भूख, मल त्‍याग और पेशाब आदि को रोके नहीं। 
  • अत्‍यधिक भोजन और व्‍यायाम करने से बचें। 
  • चिंता, डर और गुस्‍सा न करें। 

स्पर्म काउंट कम होने की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Low sperm count ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai

शुक्राणुओं की कमी से ग्रस्‍त 33 वर्षीय पुरुष पर एक अध्‍ययन किया गया था। इस मरीज को प्रमुख तौर पर कमजोरी, वजन में कमी, चक्‍कर आने, लिंग और अंडकोश की थैली में दर्द, मुंह सूखने की शिकायत थी। इस व्‍यक्‍ति में शुक्राणुओं की संख्‍या और गतिशीलता में सुधार लाने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सा की सलाह दी गई।

व्‍यक्‍ति को एक निश्‍चित समय तक माषादि वटी नामक आयुर्वेदिक कामोत्तेजक औषधि दी गई। अध्‍ययन के अंत तक मरीज़ को यौन इच्‍छा में कमी, स्‍तंभन, ऑर्गेज्‍म और वीर्यस्खलन जैसे विभिन्‍न लक्षणों से राहत मिली। उपचार के बाद व्‍यक्‍ति के वीर्य की जांच की गई जिसमें शुक्राणुओं की संख्‍या और गतिशीलता में वृद्धि पाई गई।

लो स्‍पर्म काउंट के इलाज में मस अश्वगंधादि चूर्ण के प्रभाव की जांच के लिए अन्‍य चिकित्‍सकीय अध्‍ययन किया गया था। इसमें स्‍पर्म काउंट, स्‍पर्म की गतिशीलता और वीर्य की मात्रा को बढ़ाने के लिए रोज यह मिश्रण दिया गया। अध्‍ययन में मस अश्वगंधादि चूर्ण से यौन इच्‍छा, स्‍तंभन और स्‍खलन में सुधार तथा चिंता, सेक्‍स के बाद थकान एवं कमजोरी में कमी पाई गई।

शुक्राणु की कमी की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Sperm count kam hone ki ayurvedic dawa ke side effects

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वैसे तो शुक्राणुओं की संख्‍या कम होने के उपचार में इस्‍तेमाल होने वाली आयुर्वेदिक औषधियां, चिकित्‍साएं और जड़ी बूटियां असरकारी एवं सुरक्षित होती हैं लेकिन इनके दुष्‍प्रभाव भी हो सकते हैं। व्‍यक्‍ति की प्रकृति के आधार पर कोई जड़ी बूटी हानिकारक प्रभाव भी दे सकती है, उदाहरण के तौर पर:

  • दस्‍त और कमजोर पाचन वाले व्‍यक्‍ति को विरेचन की सलाह नहीं दी जाती है। दुर्बल व्‍यक्‍ति और गर्भवती महिला को भी विरेचन कर्म से बचना चाहिए। 
  • लंबे समय से छाती में बलगम जमने की स्थिति में कपिकच्‍छू और शतावरी का इस्‍तेमाल नहीं करना चाहिए। 
  • यूरिक एसिड ज्‍यादा बनने या बुखार से संबंधित रोगों से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को शिलाजीत का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • कोई भी आयुर्वेदिक उपचार लेने से पहले चिकित्‍सक से परामर्श जरूर करें ताकि हानिकारक प्रभावों और जोखिम से बचा जा सके।

शुक्राणु की कमी की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Low sperm count ki ayurvedic dawa aur aushadhi

शुक्राणुओं की कमी के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

गोक्षुरा

  • गोक्षुरा प्रजनन, तंत्रिका, श्‍वसन और मूत्र प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें मूत्रवर्द्धक, दर्द‍-निवारक, ऊर्जादायक और कामोत्तेजक गुण होते हैं। जननमूत्रीय रोगों के लिए इस्‍तेमाल होने वाली बेहतरीन जड़ी बूटियों में गोक्षुरा का नाम भी शामिल है। ये यौन रोग और नपुंसकता के इलाज में भी उपयोगी है। गोक्षुरा शरीर से अमा को बाहर निकालने में भी मदद करती है।
  • ये ल्‍यूटीनाइजिंग हार्मोन एवं गोनाडोट्रोपिन-रिलीजिंग हार्मोन के स्‍तर को बढ़ाकर टेस्‍टोस्‍टेरोन लेवल को बेहतर करती है। इस प्रकार शुक्राणुओं के उत्‍पादन में मदद मिलती है और पुरुषों की फर्टिलिटी बढ़ती है। 

अश्‍वगंधा

  • अश्‍वगंधा प्रजनन, तंत्रिका और श्‍वसन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें अनेक जैव सक्रिय तत्‍व होते हैं जो कि अश्‍वगंधा को नपुंसकता, त्‍वचा रोगों, आर्थराइटिस, अनिद्रा और प्रतिरक्षा तंत्र से संबंधित समस्‍याओं को नियंत्रित करने में उपयोगी बनाते हैं। 
  • अश्‍वगंधा से शुक्राणु बनने लगते हैं। प्राचीन समय से ही पुरुषों में नपुसंकता को नियंत्रित करने के लिए अश्‍वगंधा का इस्‍तेमाल किया जा रहा है। अश्‍वगंधा तनाव-रोधी जड़ी बूटी के रूप में कार्य करती है और शारीरिक शक्‍ति में सुधार लाती है।
  • इस जड़ी बूटी से प्रतिरक्षा तंत्र भी उत्तेजित होता है जिससे संक्रमणों और बीमारियों से बचने में मदद मिलती है। 

कपिकच्‍छू 

  • कपिकच्‍छू तंत्रिका और प्रजनन प्रणाली पर कार्य करती है एवं इसमें कामोत्तेजक (कामेच्‍छा बढ़ाने वाले), कृमिनाशक, ऊतकों को संकुचित करने वाले और ऊर्जादायक गुण होते हैं। ये कामेच्‍छा बढ़ाने और प्रजनन अंगों के लिए शक्‍तिवर्द्धक के रूप में कार्य करती है। इस प्रकार कपिकच्‍छू नपुसंकता के इलाज में उपयोगी है। 
  • कपिकच्‍छू बदहजमी, कमजोरी और मेनोरेजिया (पीरियड्स ज्यादा आना) के इलाज में भी असरकारी है।
  • इसका इस्‍तेमाल पाउडर, काढ़े या अवलेह के रूप में किया जा सकता है। 

शतावरी

  • शतावरी, शरीर की सभी प्रणालियों पर कार्य करती है जिसमें प्रजनन तंत्र भी शामिल है। इसमें पोषक, कामोत्तेजक, शक्‍तिवर्द्धक, ऐंठन-रोधी, भूख बढ़ाने वाले और पाचक गुण मौजूद हैं। 
  • इस जड़ी बूटी को इम्‍युनिटी बढ़ाने वाले गुणों के लिए भी जाना जाता है लेकिन ये नपुसंकता, बांझपन और खासतौर पर महिलाओं में यौन दुर्बलता को नियंत्रित करने में भी मदद करती है। शतावरी खून को साफ, शरीर को पोषण प्रदान और वीर्य के उत्‍पादन को बढ़ाने का काम करती है। 
  • इसका इस्‍तेमाल काढ़े, पाउडर या घी के रूप में कर सकते हैं।

शिलाजीत 

  • शिलाजीत शरीर के सभी ऊतकों पर कार्य करती है। इसमें ऊर्जादायक, रोगाणुरोधक और मूत्रवर्द्धक गुण पाए जाते हैं।
  • ये दूषित हुए दोष विशेषत: वात दोष को संतुलित करने में मदद करती है। शिलाजीत यौन कमजोरी को दूर और पुरुषों में प्रजनन क्षमता में सुधार लाने में उपयोगी है। इसके अलावा मासिक धर्म से संबंधित विकारों, पीलिया, मोटापे, सूजन (एडिमा) और त्‍वचा रोगों के इलाज में भी शिलाजीत का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। 
  • शिलाजीत को पाउडर के रूप में दूध के साथ ले सकते हैं।

श्‍वेत मूसली

  • कामोत्तेजक गुणों से युक्‍त सफेद मूसली एक प्रसिद्ध जड़ी बूटी है। इसे आमतौर पर इरेक्‍टाइल डिस्‍फंक्‍शन के इलाज के लिए जाना जाता है। इसके अलावा ये पुरुषों में नपुसंकता और शुक्राणुओं की संख्‍या में कमी को भी दूर करने में मदद करती है। 
  • स्‍वस्‍थ रहने एवं शक्‍तिवर्द्धक के रूप में भी इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है। सफेद मूसली स्‍तनपान करवाने वाली महिलाओं में दूध बढ़ाने में मदद करती है। (माँ का दूध बढ़ाने के लिए क्या खाएं)
  • ये जड़ी बूटी एजिंग की प्रक्रिया को रोकती है। इसमें अल्‍सर-रोधी, तनाव-रोधी, ट्यूमर-रोधी, कृमिनाशक, डायबिटीज-रोधी और जीवाणु-रोधी गुण होते हैं। 
  • सफेद मूसली, च्‍यवनप्राश में इस्‍तेमाल होने वाली प्रमुख सामग्री है।

आमलकी 

  • आंवला में कामोत्तेजक, रेचक (दस्‍त), ऊर्जादायक, पोषक, ब्‍लीडिंग रोकने वाले और ऊतकों को संकुचित करने वाले गुण होते हैं। 
  • ये सभी प्रकार के पित्त रोगों को नियंत्रित करने में उपयोगी है। शुक्राणुओं की कमी को दूर करने के अलावा आंवला प्‍लीहा रोग एवं लिवर की कमजोरी, मानसिक विकारों, बवासीर, पेशाब में दर्द तथा अंदरूनी ब्‍लीडिंग के इलाज में भी असरकारी है।
  • आंवले को काढ़े या पाउडर के रूप में ले सकते हैं।

स्‍पर्म काउंट कम होने की आयुर्वेदिक औषधियां

वंग भस्‍म 

  • तांबे को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई भस्‍म को ही वंग भस्‍म कहा जाता है। ये यौन विकारों के इलाज में बहुत असरकारी होती है एवं इसमें यौन शक्ति को बढ़ाने की क्षमता होती है। 
  • इससे वीर्य की गतिशीलता और गाढ़ेपन में भी वृद्धि होती है। खराब शुक्र, रात के समय स्‍खलन और वीर्य की कम मात्रा जैसी समस्‍याओं को नियंत्रित करने में भी वंग भस्‍म उपयोगी है। इससे शरीर मजबूत होता है और वीर्य की मात्रा भी बढ़ती है। इस प्रकार वंग भस्‍म से सेक्‍स लाइफ बेहतर हो पाती है। 

मस अश्वगंधादि चूर्ण

  • इसे काली दाल, अश्‍वगंधा, यष्टिमधु (मुलेठी), गोक्षुरा, मुद्गा (मूंग दाल), कदली (केले का वृक्ष) और दूध से तैयार किया गया है। 
  • ये खराब वात और पित्त दोष को साफ, शारीरिक शक्‍ति में वृद्धि, शुक्राणुओं की संख्‍या, वीर्य की मात्रा और स्‍पर्म की गतिशीलता में सुधार करता है। ये पुरुषों में नपुंसकता के इलाज में मदद करता है। 
  • ये मिश्रण नपुंसकता से संबंधित मानकों जैसे कि यौन इच्‍छा, स्‍खलन, स्‍तंभन, आत्‍मसंतुष्टि को बढ़ाता है और सेक्‍स को लेकर चिंता एवं संभोग के बाद थकान को दूर करता है। 

माषादि वटी 

  • माषादि वटी में मश, अश्‍वगंधा, यष्टिमधु, शतावरी और मुद्गा जैसी कुछ सामग्रियां मौजूद हैं।
  • माषादि वटी शुक्राणुओं में कमी के लिए जिम्‍मेदार वात और पित्त दोष को साफ करती है। इसमें बेहतरीन पाचक शक्ति होती है और ये शरीर से अमा को भी साफ करती है। 
  • माषादि वटी सीधा शुक्र धातु पर कार्य करती है और शुक्राणुओं की संख्‍या को बढ़ाती है। इस प्रकार माषादि वटी से पुरुषों में नपुसंकता का इलाज किया जाता है। व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

शुक्राणु की कमी का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार - Sperm count kam hone ka ayurvedic upchar

स्‍नेहन 

  • स्‍नेहन चिकित्‍सा में पूरे शरीर या प्रभावित हिस्‍से पर औषधीय तेलों को लगाया जाता है। 
  • स्‍नेहन की मदद से विभिन्‍न ऊतकों में जमा अमा (विषाक्त पदार्थ) तरल में बदलकर पाचन मार्ग में आ जाता है। यहां से विषाक्‍त पदार्थों को आसानी से शरीर से बाहर निकाला जा सकता है। 
  • खराब वात के इलाज के लिए सामान्‍य तौर पर तिल के तेल का इस्‍तेमाल किया जाता है। पित्त दोष के खराब होने की स्थिति में कैनोला तेल और कफ के असंतुलन के कारण हुए रोगों को नियंत्रित करने के लिए अलसी के तेल का इस्‍तेमाल किया जाता है। स्‍नेहन, क्षीण शुक्र जैसे कई रोगों (जिनमे दोषों में एक साथ असंतुलन आता है) को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। इससे शुक्राणुओं की संख्‍या में इजाफा होता है। 

विरेचन

  • इस चिकित्‍सा में रेचक जड़ी बूटियों के द्वारा मल निष्‍कासन करवाया जाता है। 
  • मल त्‍याग के ज़रिए कई रोगों के लिए जिम्‍मेदार अधिक दोष और अमा भी शरीर से निकल जाता है। विरेचन कर्म में इस्‍तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों में सेन्‍ना और एलोवेरा शामिल हैं। 
  • विरेचन शरीर की नाडियों को साफ करता है और शरीर में पोषण को पूरी तरह से सोखने की प्रक्रिया में सुधार लाता है। इससे हर्बल और औषधीय उपचार की जैव उपलब्‍धता (दवा के असर को बढ़ाना) बढ़ती है। इस प्रकार ल्यूटीनाइज़िन्ग हार्मोन उत्तेजित होता है।
  • एलएच प्रजनन हार्मोन वीर्य की गुणवत्ता में सुधार एवं शुक्राणुओं की संख्‍या को बढ़ाता है। ऊर्जादायक और कामोत्तेजक गुणों के कारण विरेचन को यौन विकारों के उपचार में एक प्रभावी चिकित्‍सा माना जाता है।

बस्‍ती 

  • ये एक आयुर्वेदिक एनिमा चिकित्‍सा है जिसमें जड़ी बूटियों और उनके मिश्रणों से संपूर्ण आंत और मलाशय की सफाई की जाती है। 
  • सिर्फ वात दोष के बढ़ने के कारण हुए रोगों के इलाज में प्रमुख तौर पर बस्‍ती कर्म का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा वात प्रधान रोग में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। 
  • शुक्राणुओं की संख्‍या बढ़ाने एवं पुरुषों में नपुंसकता के इलाज में बस्‍ती कर्म प्रभावी चिकित्‍सा है। इसके अलावा बस्‍ती कर्म कई रोगों जैसे कि आर्थराइटिस, साइटिका, कमर दर्द, कब्‍ज, रुमेटिज्‍म, अल्‍जाइमर और मानसिक मंदता को नियंत्रित करने में भी उपयोगी है। 

आयुर्वेद के दृष्टिकोण से स्पर्म काउंट कम होना - Ayurveda ke anusar Shukranu ki kami hona

आयुर्वेद के अनुसार स्‍वस्‍थ वीर्य सफेद, तैलीय, चिपचिपा, मीठा, लसदार और शहद जैसी खुशबू वाला होता है। एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर से एक समय पर कुल 59 से 118 मि.ली वीर्य निकलता है।

अत्‍यधिक सेक्‍स, हस्तमैथुन, गलत समय पर संभोग, बहुत ज्‍यादा व्‍यायाम करना, एजिंग और किसी रोग के कारण आई कमजोरी का असर वीर्य की गुणवत्ता और संख्‍या पर पड़ता है। अत्‍यधिक नमकीन, खट्टे, कड़वे और कसैले खाद्य पदार्थ खाने का असर भी वीर्य पर पड़ सकता है जिसके कारण शुक्राणुओं में कमी की समस्‍या पैदा हो सकती है। 

दोष के आधार पर खराब वीर्य के कारण होने वाले रोगों को आयुर्वेद में निम्‍न आठ प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:

  • वातरेतस, पित्तरेतस, कफरेतस: ये वात, पित्त या कफ के खराब होने के कारण होते हैं। 
  • कुणपरेतस: बहुत ज्‍यादा संभोग या घाव के कारण ऐसा होता है। इसके कारण वीर्य की मात्रा में वृद्धि के साथ उसमें से बदबू आने लगती है। 
  • ग्रंथीरेतस: ये वात और कफ दोष के खराब होने के कारण होता है जिसकी वजह से स्‍खलन के दौरान रुकावट और दर्द होता है। 
  • पूतीपूयरेतस: पित्त और कफ के खराब होने के कारण ऐसा होता है जिससे वीर्य पस जैसा होने लगता है।
  • क्षीण शुक्र: वात और पित्त दोष के खराब होने के कारण क्षीण शुक्र की समस्‍या होती है। इसमें वीर्य की गुणवत्ता और संख्‍या में कमी, स्‍खलन में देरी या वीर्य में खून आ सकता है।
  • मूत्रपुरिषरेतस: ये समस्‍या त्रिदोष के खराब होने के कारण होती है और इसमें वीर्य से पेशाब या मल जैसी बदबू आती है। खराब वीर्य से संबंधित उपरोक्‍त सभी प्रकारों का कारण अनुचित आहार और जीवनशैली से संबंधित गलत आदतें हैं। सभी आठ प्रकार के वीर्य विकारों को ठीक किया जा सकता है।

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