जोड़ों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा और इलाज - Ayurvedic medicine and treatment for Joint Pain (Arthralgia) in Hindi
अर्थ्रेल्जिया को सामान्य भाषा में जोड़ों में दर्द और आयुर्वेद में संधिशूल कहा जाता है। गठिया और चोट (जैसे कि मरोड़ एवं मोच) अर्थ्रेल्जिया के कुछ सामान्य कारणों में शामिल हैं। एक या एक से ज्यादा जोड़ों में दर्द बर्साइटिस (बर्सा की सूजन या जलन), हड्डियों में संक्रमण और कुछ प्रकार के बुखार की वजह से भी जोड़ों में दर्द की शिकायत हो सकती है।
वृद्धावस्था में ऑस्टियोआर्थराइटिस के कारण जोड़ों में दर्द होना आम बात है। आर्थराइटिस के कई अन्य प्रकार (जैसे रुमेटाइड आर्थराइटिस और गठिया) के कारण भी जोड़ों में दर्द हो सकता है। जोड़ों में दर्द के अलावा आर्थराइटिस के कारण जोड़ों में सूजन और अकड़न रहती है एवं इस वजह से जोड़ों को हिलने-डुलने में परेशानी आती है।
आयुर्वेद के दृष्टिकोण से जोड़ों में दर्द - Ayurveda ke anusar Joint Pain
संधिशूल या जोड़ों में दर्द होने के कई कारण हो सकते हैं। आयुर्वेद के अनुसार निम्न कारणों की वजह से संधिशूल की समस्या हो सकती है:
ऑस्टियोआर्थराइटिस: इसे संधिवात भी कहा जाता है। इस स्थिति में एक या एक से ज्यादा जोड़ों में दर्द होता है। इसमें जोड़ों और कार्टिलेज (लचीला संयोजी ऊतक) के बीच सूजन एवं टकराव हो सकता है। जोड़ों में अत्यधिक वात जमने की वजह से जोड़ों में दर्द की शिकायत हो सकती है।
रुमेटाइड आर्थराइटिस: इसे आमवात के नाम से भी जाना जाता है। इसमें जोड़ों में अमा (विषाक्त पदार्थ) के जमाव की वजह से जोड़ों में दर्द और सूजन होती है। यह पेडू के पीछे स्थित कठोर जोड़ को भी प्रभावित करता है जिसका सामान्य तौर पर संबंध भूख में कमी तथा बुखार से होता है।
गठिया: इसे वातरक्त कहा जाता है एवं इसमें वात और रक्त के खराब होने के कारण जोड़ों में दर्द महसूस होता है।
हड्डियों का खराब होना: धातुक्षय (हड्डियों की विकृति) जैसे कि ऑस्टियोपोरोसिस, संधि शैथिल्य के कारण (जोड़ों में ढीलापन), अस्थिभेद (हड्डियों में फ्रैक्चर या चोट), रुक्क्षत (सूखापन), फ्रैक्चर ठीक होने में देरी होने, विकृति जैसे कि मेरुवक्रता (मेरुदंड का सीधा न होकर किसी एक तरफ झुक जाना) तथा कुबड़ापन के कारण हो सकता है।
जोड़ों में दर्द का आयुर्वेदिक उपचार - Jodo me dard ka ayurvedic ilaj
निदान परिवार्जन
- सभी प्रकार के रोगों को नियंत्रित करने का निदान परिवार्जन एक महत्वपूर्ण तरीका है। इसमें रोग के कारण को दूर करने पर काम किया जाता है। ये रोग को बढ़ने एवं दोबारा होने से रोकता है एवं उससे बचाव करता है।
- जोड़ों में दर्द के कारण के आधार पर दोष को और ज्यादा खराब होने एवं दर्द को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन प्रक्रियाओं में अनशन (व्रत), प्रमितशन (सीमित आहार लेना), अल्पशन (कम मात्रा में खाना), लंघन (व्रत) और रुक्षन्नपान सेवन (सूखे खाद्य पदार्थों का सेवन) शामिल है।
अभ्यंग
- अभ्यंग चिकित्सा में जड़ी बूटियों से युक्त तेल से प्रभावित हिस्से की मालिश की जाती है। इस प्रक्रिया में अभ्यंग के लिए इस्तेमाल होने वाले तेल का चयन व्यक्ति के रोग की स्थिति के आधार पर किया जाता है। इस चिकित्सा में एक से ज्यादा जड़ी बूटियों के मिश्रण का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- ये प्रभावित हिस्से में पोषक तत्वों को लाने एवं अमा को साफ कर दर्द से राहत दिलाले में मदद करती है।
- अभ्यंग के कई लाभ होते हैं जैसे कि शरीर को पोषण मिलना, एजिंग से बचाव, थकान और तनाव में कमी आना, प्रतिरक्षा तंत्र का उत्तेजित होना आदि।
स्वेदन
- इस चिकित्सकीय प्रक्रिया में शरीर से अमा को बाहर निकालने के लिए पसीना लाया जाता है। अर्थ्राल्जिया की स्थिति में विभिन्न तरीकों जैसे कि उपनाह (गर्म पुल्टिस को प्रभावित जोड़ों पर रखना) से पसीना लाया जाता है।
- कई तरह की जड़ी बूटियों से पुल्टिस तैयार की जाती है एवं दर्द के कारण के आधार पर ही जड़ी बूटियों को चुना जाता है। वात विकारों को ठीक करने के लिए उपनाह सबसे बेहतरीन चिकित्साओं में से एक है।
- प्रभावित हिस्से को गरमाई देकर अमा को पिघलाया जाता है जिससे वो द्रव में बदल जाती है एवं शरीर की नाडियों को चौड़ा किया जाता है। बाद में इस अमा को जोड़ों से पसीने के रूप में बाहर निकाला जाता है। इस प्रकार दर्द से राहत मिलती है।
बस्ती
- वात विकारों के इलाज में प्रमुख तौर पर बस्ती का इस्तेमाल किया जाता है। ये एक आयुर्वेदिक एनिमा चिकित्सा है जिसमें विभिन्न जड़ी बूटियों और उनके मिश्रण से पूरी आंत, गुदा और मलाशय की सफाई की जाती है।
- ये शरीर से अमा को साफ करती है और दर्द के लक्षणों से राहत दिलाती है। बस्ती कर्म गठिया, रुमेटिज्म, ऑस्टियोपोरोसिस और कमर के निचले हिस्से में दर्द के इलाज में उपयोगी है।
- बच्चों, बुखार, पॉलिप्स और मलाशय में ब्लीडिंग से ग्रस्त व्यक्ति को बस्ती कर्म की सलाह नहीं दी जाती है।
विरेचन
- विरेचन में कुछ जड़ी बूटियों और उनके मिश्रण से मल साफ किया जाता है। इसमें शरीर से मल के ज़रिए अमा को बाहर निकाला जाता है। अमा अनेक रोगों के लिए जिम्मेदार होता है।
- सेन्ना और एलोवेरा जैसे रेचक का इस्तेमाल विरेचन चिकित्सा में मल, पित्त और पित्त रस के प्रवाह में आ रही रुकावट को साफ किया जाता है।
- वात रोगों में विरेचन की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि इसके कारण पाचन अग्नि कमजोर हो सकती है। ये शरीर से अत्यधिक पित्त को हटाती है और कफ विकारों के लिए इसकी सलाह दी जाती है।
- मलाशय में अल्सर और दस्त की स्थिति में विरेचन की सलाह नहीं दी जाती है। वृद्ध और कमजोर व्यक्ति एवं गर्भवती महिला को भी विरेचन कर्म से बचना चाहिए।
लेप
- इसमें विभिन्न जड़ी बूटियों से तैयार गाढ़े पेस्ट को प्रभावित हिस्से पर लगाया जाता है। ये सूजन और दर्द को कम करने का एक आसान तरीका है।
- लेप तैयार करने के लिए विभिन्न जड़ी बूटियों का इस्तेमाल लक्षणों और रोग की स्थिति के अनुसार किया जाता है। उदाहरणार्थ: तेज दर्द को नियंत्रित करने में दशमूल और दूध से बने प्लास्टर का इस्तेमाल किया जाता है। लेप में घी मिलाकर रुमेटाइड आर्थराइटिस को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
अग्नि कर्म
- इसमें किसी विशेष उपकरण या धातु की मदद से प्रभावित हिस्से पर अग्नि (सिकाई) दी जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान गर्म उपकरण से जोड़ के उस हिस्से को जलाया जाता है जिसमें सबसे ज्यादा दर्द होता है।
- अग्नि कर्म से पहले कीटाणुरहित रेशमी कपड़े से प्रभावित हिस्से की सफाई की जाती है। इस चिकित्सा के बाद दर्द वाले हिस्से में जलन से राहत पाने के लिए घृतकुमारी के गूदे को लगाया जाता है।
- ऑस्टियोआर्थराइटिस में दर्द और सूजन को नियंत्रित करने के लिए विशेष तौर पर इस चिकित्सा का इस्तेमाल किया जाता है।
जोड़ों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि - Jodo me dard ki ayurvedic dawa aur aushadhi
जोड़ों में दर्द के लिए आयुर्वेदिक जड़ बूटियां
रसना
- रसना में विभिन्न फाइटो घटक जैसे कि फ्लेवेनॉइड्स, ट्रिटेरपेनोइड्स, लैक्टोंस और स्टेरोल है जो कि विभिन्न रोगों को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
- इस पौधे में गठिया-रोधी और सूजन-रोधी (दर्द और सूजन से राहत दिलाने वाले) गुण होते हैं। ये सूजन और हड्डियों से संबंधित रोगों जैसे कि ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज में उपयोगी है।
रसोनम
- रसोनमक (लहसुन) परिसंचरण, तंत्रिका, प्रजनन, श्वसन और पाचन प्रणाली पर कार्य करती है।
- इसमें नसों तथा हड्डियों को आराम और ऊर्जा देने वाले प्रभाव होते हैं एवं ये खून और लसीका से अमा को साफ करती है। ये रुमेटाइड आर्थराइटिस, एडिमा और वात बुखार को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
अश्वगंधा
- अश्वगंधा तंत्रिका, प्रजनन और श्वसन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की क्षमता है।
- इसमें ऊतकों को ठीक करने की शक्ति होती है इसलिए ये मांसपेशियों की कमजोरी को नियंत्रित करने में उपयोगी है। अश्वगंधा आर्थराइटिस में होने वाली सूजन के इलाज में भी मदद करती है।
- खांसी और छाती में बलगम जमने पर अश्वगंधा नहीं लेनी चाहिए।
शल्लकी
- रुमेटाइड आर्थराइटिस और ऑस्टियोआर्थराइटिस के मामले में जोड़ों में दर्द और अकड़न को नियंत्रित करने के लिए प्रमुख तौर पर शल्लकी का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बायोएक्टिव (जीवित वस्तुओं पर प्रभाव करने वाला) प्रभाव होते हैं जो सूजन-रोधी और दर्द निवारक गुण रखते हैं।
- ये वात दोष को साफ कर वात दोष के असंतुलन के कारण हुए रोगों के इलाज में मदद करती है।
- शल्लकी जोड़ों को भी मजबूती प्रदान करती है।
शंख
- शंख अत्यधिक पित्त और कफ को खत्म करता है।
- इसमें उच्च मात्रा में कैल्शियम होता है जो कि हड्डियों के मास (कंकाल में हड्डियों के ऊतकों की मात्रा को बोन मास कहा जाता है) में सुधार और मजबूती प्रदान करते हैं। (- हड्डी मजबूत करने के घरेलू उपाय)
- इसमें दीपन (भूख बढ़ाने वाले) और पाचन (पाचक) गुण होते हैं। ये शरीर की संपूर्ण सेहत में सुधार लाता है।
शुंथि
- शुंथि पाचन और श्वसन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें दर्द निवारक, कफ निस्सारक (बलगम निकालने वाला) और वायुनाशक (पेट फूलने से राहत) गुण मौजूद हैं।
- वात, पित्त और कफ के खराब होने के कारण हुए किसी भी रोग के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
- शुंथि प्राकृतिक गठिया-रोधी है। इससे दर्द और सूजन को राहत मिलती है। ये अस्थि खनिज घनत्व (हड्डी के ऊतकों में हड्डी खनिज की मात्रा) के नुकसान को रोकने में भी मदद करती है।
जोड़ों में दर्द के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
मुक्ताशुक्ति भस्म
- ये एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसे मुक्ता (मोती) और शुक्ति (शंख) भस्म (राख) से तैयार किया गया है। ये खराब हुए वात और पित्त दोष को संतुलित करता है।
- मुक्ता भस्म कमजोर धातुओं को पोषण देकर मजबूती प्रदान करता है। मुक्ताशुक्ति भस्म प्रमुख तौर पर अस्थि धातु को पोषण देती है। इस प्रकार ये अस्थि धातु के कमजोर होने के कारण हुए जोड़ों और हड्डियों से संबंधित रोगों की असरकारी औषधि है। वैज्ञानिक तौर पर इसमें कैल्शियम की उच्च मात्रा होती है इसलिए कैल्शियम की कमी के कारण हुए जोड़ों के दर्द को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
- जोड़ों में दर्द के अलावा मुक्ताशुक्ति भस्म सनस्ट्रोक और सिरदर्द को नियंत्रित करने में भी मदद करती है।
- शुक्ति भस्म के गुण मुक्ता भस्म जैसे ही होते हैं। हालांकि, शुक्ति भस्म संपूर्ण धातु क्रम को पोषण और मजबूती भी प्रदान करती है। ये प्रमुख तौर पर रक्त, रस, अस्थि और मम्सा धातु पर कार्य करती है।
योगराज गुग्गुल
- योगराज गुग्गुल को कई तरह की जड़ी बूटियों जैसे कि चित्रक, पिप्पलीमूल, पर्सिक यवनी, विडंग, रसना, गोक्षुरा, त्वाक (दालचीनी), गुडूची, गुग्गुल, शतावरी आदि।
- ये सभी प्रकार के वात रोगों खासतौर पर रुमेटाइड आर्थराइटिस को नियंत्रित करने में मदद करती है। लंबे समय से हो रहे रुमेटाइड आर्थराइटिस में महायोगराज गुग्गुल बहुत असरकारी मानी जाती है।
- वात में असंतुलन के कारण रक्त धातु के खराब होने पर गाउट से होने वाला संधिशोथ होता है। ये औषधि इस स्थिति में भी उपयोगी होती है।
- योगराज गुग्गुल वात दोष को साफ करती है और शरीर से अमा को बाहर निकालती है। ये स्थिति आगे चलकर जोड़ों में दर्द का कारण बन सकती है।
- अत: ये औषधि रुमेटाइड आर्थराइटिस, गठिया और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डियों को प्रभावित एवं जोड़ों में दर्द पैदा करने वाली समस्याओं को नियंत्रित कर जोड़ों में दर्द से राहत दिलाती है। ये शरीर को कैल्शियम भी देती है और कैल्शियम की कमी के कारण हुए दर्द से भी राहत दिलाती है।
सिंहनाद गुग्गुल
- सिंहनाद गुग्गुल को विभीतकी, शुद्ध गुग्गुल, आमलकी, शुद्ध गंधक, हरीतकी और अरंडी मूल (जड़) के मिश्रण से तैयार किया गया है। से अमा के पाचन को उत्तेजित करती है विशेषत: दर्द वाले हिस्से में और संपूर्ण पाचन शक्ति में भी सुधार लाती है।
- ये अत्यधिक कफ के उत्पादन को रोकती है और नाडियों में आ रही रुकावट को दूर करती है। ये सभी गुण मिलकर जोड़ों में दर्द और रुमेटाइड आर्थराइटिस के अन्य लक्षणों से राहत दिलाते हैं।
दशमूलारिष्ट
- इस मिश्रण को दस जड़ी बूटियों की जड़ से तैयार किया गया है जिसमें बिल्व (बेल), श्योनाक, अग्निमंथ, गंभारी, पृश्निपर्णी, बृहती, कंठकारी और गोक्षुरा शामिल है।
- कई वात रोगों के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है।
- हड्डियों के अपक्षयी (बढ़ता हुआ रोग जो किसी अंग को पूरी तरह से निष्क्रिय कर सकता है) रोग जैसे कि ऑस्टियोआर्थराइटिस से ग्रस्त मरीज़ को दशमूलारिष्ट की सलाह दी जाती है। ये रुमेटाइड आर्थराइटिस के इलाज में भी उपयोगी है।
- इस औषधि से वात के कारण हुए अस्थमा, फिस्टुला और खांसी का इलाज भी किया जाता है।
व्यक्ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें।
आयुर्वेद के अनुसार जोड़ों में दर्द में क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Joint Pain kam karne ke liye kya kare kya na kare
क्या करें
- पुराने शलि चावल, मूंग दाल और दूध को अपने आहार में शामिल करें।
- फल और सब्जियां जैसे कि सहजन, परवल और अंगूर खाएं।
- अपनी दिनचर्या में मालिश और गर्म पानी से स्नान को शामिल करें।
- गुनगुना पानी पीने से भी दर्द से राहत मिल सकती है।
- पर्याप्त नींद लें।
क्या न करें
- अपने भोजन में सूखी और कच्ची सब्जियां खाने से बचें।
- बुहत ज्यादा दालें, अंकुरित अनाज और सलाद न खाएं।
- परिष्कृत खाद्य पदार्थ जैसे कि सफेद आटा न लें।
- बहुत जल्दी–जल्दी अपने सोने की शैली को न बदलें।
- हरी पत्तेदार सब्जियों, मशरूम, मटर, तीखे खाद्य पदार्थ, कोल्ड ड्रिंक, ठंडे खाद्य पदार्थ और आइसक्रीम का अधिक मात्रा में सेवन करने से बचें।
- लगातार व्रत न रखें या लंबे समय तक खाने से दूर न रहें।
- प्राकृतिक इच्छाओं जैसे मल त्याग करने या पेशाब को रोके नहीं।
- बहुत ज्यादा शारीरिक कार्य न करें जिससे जोड़ों या जोड़ों में लगी चोट पर दबाव पड़े।
जोड़ों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Joint Pain ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
एक तुलनात्मक अध्ययन में अग्नि कर्म चिकित्सा से ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षणों (जैसे घुटनों के जोड़ों में दर्द, अकड़न और आवाज़ आना) से ग्रस्त 45 से 70 वर्ष की आयु के 30 लोगों को शामिल किया गया। सभी प्रतिभागियों को दो भागों में बांटा गया, इनमें से एक समूह को सिल्वर की रॉड और दूसरे समूह को आयरन की रॉड से अग्नि कर्म चिकित्सा दी गई। सबसे पहले त्रिफला क्वाथ और कीटाणुरहित रेशमी कपड़े से दर्द वाले हिस्से की सफाई की गई।
इसके बाद धातु की रॉड से अग्नि कर्म किया गया। चिकित्सा के बाद हरीद्रा (हल्दी) पाउडर से उस हिस्से को ढक दिया गया। ठंडक देने के लिए उस हिस्से पर घृतकुमारी (एलोवेरा) भी लगाई गई। शहद और घी भी लगाया गया।
सिल्वर रॉड से इलाज लेने वाले समूह के 75 फीसदी से ज्यादा लोगों को जोड़ों में दर्द से राहत मिली जबकि आयरन की रॉड से उपचार लेने वाले 80 फीसदी से ज्यादा लोगों को दर्द से राहत मिली। कई प्रतिभागियों को अन्य लक्षणों से भी राहत महसूस हुई। अध्ययन में पाया गया कि ऑस्टियोआर्थराइटिस में आयरन रॉड से अग्नि कर्म करना जोड़ों में दर्द से राहत दिलाने में सिल्वर रॉड की तुलना में ज्यादा प्रभावी है।
जोड़ों में दर्द की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Joint Pain ki ayurvedic dawa ke side effects
ऐसा नहीं है कि प्राकृतिक नुस्खों का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। सभी आयुर्वेदिक उपचार, जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में ही करना चाहिए। व्यक्ति की पूरी चिकित्सकीय जांच के बाद ही डॉक्टर आपको कोई विशेष औषधि लेने की सलाह देते हैं। कुछ मामलों में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है जैसे कि, गर्भवती महिला और कमजोर व्यक्ति पर विरेचन कर्म नहीं करना चाहिए। शिशु, गुदा मार्ग से ब्लीडिंग और अल्सर से ग्रस्त व्यक्ति पर बस्ती कर्म नहीं करना चाहिए। शुंथि के कारण पित्त बढ़ सकता है इसलिए बुखार, ब्लीडिंग से संबंधित विकार और अल्सर में इसके सेवन की सलाह नहीं दी जाती है।
जोड़ों में दर्द की आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Artharlgia ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
हर व्यक्ति को अपने जीवन में कभी न कभी जोड़ों में दर्द की शिकायत होती ही है। विभिन्न कारणों की वजह से जोड़ों में दर्द हो सकता है और इसके कारण ही सही पहचान कर दर्द को जड़ से हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है।
जोड़ों में दर्द के कारण व्यक्ति दैनिक कार्य भी ठीक तरह से नहीं कर पाता है और इसका असर उसकी एकाग्रता पर भी पड़ता है। आयुर्वेद में जोड़ों में दर्द के इलाज और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्राचीन चिकित्साओं और औषधियों का इस्तेमाल किया जाता है।